गुरुवार, 28 अक्तूबर 2010

शरद पूर्णिमा की रात

सच्चिदानंद
अच्छा है कि आज
शहर में नहीं है बिजली
और जवान है शरद पूर्णिमा कि रात
अगर आयेगी बिजली
तो बुझा लो अपनी-अपनी बत्ती
भेज दो बिजली को वहां
जहाँ हो आमावस

आओ,
लिखें एक कविता
ओस से नहाये हुए धन के पौथों के बीच
उसके जूडे में सिंगरहार लगाने की
लेकिन यहाँ नहीं है धनखेत
खुली हुई छत पर पसरी हुई है चांदनी
तो आओ,
इस दूधिया रोशनी में लिखें
चांदनी बचाने की कविता
पसरे हुए सिंगरहार की खुशबू से
मह-मह करते आँगन की कविता
आओ,
इस सिहरन भरी रात में लिखें
कल-कल बहती कोसी-कमला की कविता
खिलखिलाती हुई धरती की कविता

रविवार, 24 अक्तूबर 2010

माचिस

सच्चिदानंद  
यह माचिस नहीं
कल के लिए आग है
कल, जब भीषण ठंड में
लोटे का पानी
बन जायेगा बर्फ
ठिठुरती हुई रात में
जलेगी माचिस की आग
पिघलेगा बर्फ और
बुझेगी प्यास

बुधवार, 20 अक्तूबर 2010

छेदना के लिए

सच्चिदानंद
 काश, छेदना भी उड़ पाता जहाज पर
काश छेदना भी जा पाता दिल्ली
घूम आता अमरीका से
देख आता आगरे का ताजमहल
लेकिन छेदना के लिए तो गोड्डा भी दूर था
सुसनी  से सुन्दरपहाड़ी जाने में भी होती थी कठिनाई
अपने पैरों का ही भरोसा था- कहीं आने-जाने के लिए

कहते हैं कि छेदना भूख से मर गया
डाक्टर कहते हैं कि वह कुपोषित था
कई बीमारियों की वजह से उसकी मौत हुई

बात जो भी हो \ लेकिन यह सब उस समय हुआ था
जब हमारे देश में
हवाई जहाज में चढ़ने वालों की संख्या में वृद्धि हुई थी
वैश्विक मंदी का दौर भी था
बड़ी-बड़ी कम्पनियों में
भरी संख्या में लोगों की छुट्टी की जा रही थी
लेकिन कार के साथ कलर टीवी मुफ्त में बांटे जा रहे थे
कम्पनी की ओर से ग्राहकों का बिमा कराया जा रहा था
साबुन के साथ साबुन व तेल के साथ शैम्पू
देने का चलन तो पहले ही शुरू हो चुका था

लेकिन छेड़ना के पड़ोसी की मानें तो,
 उसे दो महीने तक अन्न के दर्शन तक नहीं हुए थे
जब छेड़ना ने बिस्तर पकड़ा तो
पड़ोसियों ने उसे दो-चार दिन तक भोजन कराये 
लेकिन वे भी कितना दिन खिला सकते  थे
दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद
इतने पैसे नहीं बचते थे कि अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण कर सके
लोग बताते हैं कि छेदना की एक कुपोषित बेटी
भोजन नहीं मिलने के कारण
पहले ही दम तोड़ चुकी थी
डाक्टर इस बात से चकित थे कि
छेदना इतने दिनों तक जिन्दा कैसे रहा
यह सब उस समय हो रहा था
जब चाँद पर जमीन खरीदने की बात हो रही थी
अपने परिवार के साथ फाइव स्टार होटल में
खाना खाने वोले लागों की संख्या में वृद्धि हुई थी

असल में
इन सबके बीच एक गहरी खाई थी
पहले से कहीं ज्यादा गहरी
जो गहरी दिखती नहीं थी.

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2010

पाकिस्तानी कवयित्री फ़हमीदा रियाज की कविता

पाकिस्तानी कवयित्री फ़हमीदा रियाज की कविता नया भारत दो मुल्कों की एक तस्वीर पेश करती है. इस कविता को  हँस के जुलाई 1999 अंक से साभार लिया गया है.
नया भारत

तुम बिल्कुल हम जैसे निकले

अब तक कहां छुपे थे भाई?
वह मूरखता, वह घामड़पन
जिसमें हमने सदी गंवाई
आखिर पहुंची द्वार तुम्हारे
अरे बधाई, बहुत बधाई

भूत धरम का नाच रहा है
कायम हिन्दू राज करोगे?
सारे उल्टे काज करोगे?
अपना चमन नाराज करोगे?

तुम भी बैठे करोगे सोचा,
पूरी है वैसी तैयारी,
कौन है हिन्दू कौन नहीं है
तुम भी करोगे फतवे जारी

वहां भी मुश्किल होगा जीना
दांतो आ जाएगा पसीना
जैसे-तैसे कटा करेगी
वहां भी सबकी सांस घुटेगी

माथे पर सिंदूर की रेखा
कुछ भी नहीं पड़ोस से सीखा!
क्या हमने दुर्दशा बनायी
कुछ भी तुमको नज़र न आयी?

भाड़ में जाये शिक्षा-विक्षा,
अब जाहिलपन के गुन गाना,
आगे गड्ढा है यह मत देखो
वापस लाओ गया जमाना

हम जिन पर रोया करते थे
तुम ने भी वह बात अब की है
बहुत मलाल है हमको, लेकिन
हा हा हा हा हो हो ही ही

कल दुख से सोचा करती थी
सोच के बहुत हँसी आज आयी
तुम बिल्कुल हम जैसे निकले
हम दो कौम नहीं थे भाई

मश्क करो तुम, आ जाएगा
उल्टे पांवों चलते जाना,
दूजा ध्यान न मन में आए
बस पीछे ही नज़र जमाना

एक जाप-सा करते जाओ,
बारम्बार यह ही दोहराओ
कितना वीर महान था भारत!
कैसा आलीशान था भारत!

फिर तुम लोग पहुंच जाओगे
बस परलोक पहुंच जाओगे!

हम तो हैं पहले से वहां पर,
तुम भी समय निकालते रहना,
अब जिस नरक में जाओ, वहां से
चिट्ठी-विट्ठी डालते रहना!

सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

निर्मला पुतुल की संताली कविता

निर्मला पुतुल संताली की चर्चित कवयित्री हैं. उनकी कविताओं में आदिवासियों के संघर्ष और उनकी जिजीविषा की झलक मिलती है.
बाँस
बाँस कहाँ नहीं होता है

जंगल हो या पहाड़
हर जगह दिखता है बाँस

बाँस जो कभी छप्पर में लगता है तो कभी
तम्बू का खूँटा बनता है
कभी बाँसुरी बनता है तो कभी डण्डा
सूप, डलिया हो पंखा
सब में बाँस का उपयोग होता है.

बाँस की ख़ासियत भी अजीब है
जो बिना खाद-पानी के भी बढ़ जाता है
उसकी कोई देखभाल नहीं करनी पड़ती है
बस, जहाँ लगा दो लग जाता है

पर बुजुर्गों का कहना है कि
कुँवारे लड़के-लड़कियों को इसे नहीं लगाना चाहिए
नहीं तो हमेशा बाँझ ही रह जाएंगे.

बाँस जहाँ भी होता है
अपनी ऊँचाई का अहसास कराता है
जहाँ अन्य पेड़ बौने पड़ जाते हैं

बाँस को लेकर कई अवधारणाएँ हैं
आदिवसियों की कुछ और ग़ैरआदिवासियों की कुछ
चूँकि बाँस के सम्बन्ध में आदिवासियों की धारणा
सबसे महत्त्वपूर्ण और उल्लेखनीय है.

बाँस को लेकर कई मुहावरे हैं
जिसमें एक मुहावरा किसी को बाँस करना है
जो इन दिनों सर्वाधिक चर्चित मुहावरा है

अब इस बाँस करना में कई अर्थ हो सकते हैं
यह आदमी पर निर्भर करता है कि
इसका कौन कैसा अर्थ लेता है.

यदि मैं आपको कहूँ
आपके बाँस कर दूँगी
तो अब आप ही बताएँ कि
इसका क्या अर्थ लेंगे.

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

बाबा नागार्जुन की कविता

१९५२ में लिखी गयी बाबा की कविता अकाल और उसके बाद की प्रासंगिकता अभी ख़त्म नहीं हुई है. भूख से आज भी मौतें होती है. फर्क सिर्फ इतना है कि गरीब व अमीर के बीच की खाई ज्यादा गहरी हो गयी है. ग्लोबलाय लेजेशन के इस युग में एक तबका काफी पीछे छूट गया है. यह हमारे देश की विडंबना ही है  कि यह कविता आज भी प्रासंगिक है. भूख से हुई मौतें अब अख़बारों की सुर्खियाँ नहीं बनती.
अकाल और उसके बाद
कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त ।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद

चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद ।

रचनाकाल : 1952

रविवार, 3 अक्तूबर 2010

भवनाथ झा की मैथिली कहानी

                                                             घुरि आउ कमला
एक नगरमे एक राजा रहथि, हुनक यश दूर दूर धरि पसरल छलनि। से सूनि क' आन आन नगरसँ लोक सभ आबि ओतए बसए लागल। राजाक आमदनी बढ़ल गेलनि। ओ पहिनेसँ आर बेसी भोग-विलासमे लागि गेलाह। नवघरिया सभक द्वारा अपन-अपन नगरसँ आनल वस्तुजात सभक उपभोग बढैत गेलनि। पछिमाहा दारू आ दछिनाहा बुलकीवाली सभक चसक लागि गेलनि। आब ओ की तँ शिकार खेलाथि नहि तँ अन्नरक कोठामे जमल रमल रहथि। राज-काजक सभटा भार देवानजी पर छलनि। ओ बड बुधियार रहथि आ मुँहगर लोकसभ सुखी सम्पन्न छल तें नीक जकाँ दिन बितल जाइत रहनि।
मुदा, एक बेर राजमे रौदी भेल। इनार पोखरि सभ सुखा गेलै। पुक्खो रुक्खे चल गेलै; लोक अन्न पानि बेतरेक मरए लागल। राजाकें चाँकि भेलनि। एहि आफदमे लोकक रक्षाले' पोखरि खुनबए लागलाह। राजाक बखारी खुजल। तिनसाला बासमती चाउर, जन कें बोनि भेटए लगलैक। अन्न तँ भेटलै मुदा पानि ले' लोक बेलल्ले रहल। दू चारि रजकूप टा टेक धएने छलैक। बाँकी सभमे चट्टा पडि गेल रहैक। माल-जाल सभ किछु दिन पोखरिक घोर मठार पानि पीलक मुदा बादमे ओहो सुखाए गेलै। चमरखल्ली गन्हाए लागल।
लोक सभकें आस लागल रहै जे पोखरि खुनाएत तँ पानिक सोह फुटतैक। मुदा से नहि भए रहल छलैक। सोह तँ दूर, गिलगर माँटियो नै अभरि रहल छलैक। राजा सभ दिन साँझके अपनहि जा क' देखथि आ निरास भ' घूरि जाथि। लोक सभ बाजए लागल जे कमला माइक कोनो अनठ भेलनि तें रूसि रहलीह। राजाक आढ़ति भेल। सभठाम कमला माइक पूजा हुअए लागल। पाठी कबुला कएल गेल। आन-आन नगर सँ भाँति-भाँतिक धामि सभ बजाओल गेलाह। केओ धानक जुट्टी, तँ केओ डाला भरि पान आ डाला भरि मखान चढ ओलनि, मुदा कोनो फल नहि। एक गोटे कहलनि जे कमला माइक सुखाएल धारमे सोनाक माछ गाड ल जाए।' ई सुनितहि रानी झट द' अपन खोपासँ माछ निकालि धामिक आगाँ राखि देलनि। एहि टोनापर सभक विश्वास रहैक। जन सभ राति क' सपना देखए लागल जे कोदारिक छओ लगितहि पानिक तेहन बमकोला छुटलै जे सभ कोदारि छोडि छोडि भागि रहल अछि। जेना धरती फाटि गेल होइक। लोकक भरोस बढ ल गेलै। दिन बेरागन देखि क' नगरक पुबरिया धारमें एक हाथ गँहीर, एक हाथ नाम आ एक हाथ चाकर खाधि खूनल गेल। ओहिमे राजा अपनहि हाथें माछ गाड लनि। दोसर दिन जन सभ दुन्ना जोश सँ माँटि कोड ए लागल, मुदा सभ व्यर्थ। पोखरि एक बाँस गँहीर भ' गेल रहैक, तैयो माटि ठक ठक करै। राजा बड चिन्तित भेलाह। रातुक निन्न बिलाए गेलनि। कने काल ले' आँखि लागियो जाइन तँ तेहन ने' सपना देखए लागथि जे चेहा क' उठि जाथि।
एही हालमे एक राति राजा सपनामे सुनलनि जे केओ स्त्री हिचुकि हिचुकि क' कानि रहल अछि। राजा चेहा क' उठलाह। सपना सत्त बुझएलनि। भेलनि जे रानी कनैत छथि। मुदा नहि। रानी सूतलि रहथि। तखनि राजाकें छगुन्ता लगलनि। एक बेर इच्छा भेलनि जे रानीकें उठाए दियनि, मुदा फेर सोचलनि जे इहो तँ कइएक राति सँ जगरने कए रहल छथि, तें जँ निन्न भेल छनि तँ थोड ेक काल सुतए दैत छियनि। राजा उठलाह। चारूकात अकानलनि। कानब बंद भ' गेल रहैक। जखनि कोनो भाँज नहि लगलनि तँ फेर सूति रहलाह। थोडे कालमे फेर कानब सुनलनि। एहिना जहाँ ने राजाकें आँखि लागनि कि कानब सुनथि। उठि क' बैसथि की ओ आवाज बिला जाइ। राजा चिन्तित भेलाह। भिनसरे धामि सभकें बजाए कहलथिन। ओ लोकनि टोना-टापरमे लागि गेलाह। कते कँटैल, बङौर आ मरिचाइ आगिमे झोंकल गेल, तकर ठेकान नहि। मुदा सभ व्यर्थ।
एहिना कतोक दिन बीति गेल। एक राति राजा के बुझएलनि जे हुनकर पलङरी लग एकटा स्त्री ठाढ़ि अछि। ओकर एक हाथमे धानक जुट्टी छैक आ दोसरमे भेटक फूल। लाल रङक पटोर पहिरने अछि आ गरदनिमे मखानक फोंकाक माला लटकल छैक। ओएह हिचुकि हिचुकि कानि रहल अछि।
राजा पुछलखिन- ''अहाँ के छी? किए कनै छी।'' ओ बजलीह- ''बाउ! हम अहाँक गोसाउनि थिकहुँ। हमर सखी कमला तमसाए पताल लोक चल गेल छथि। हमरा एसकर मोन नै लगैए तें कोंढ फाटि जाइ-ए।''
राजा दुनू हाथ जोडि हुनका प्रणाम कएल आ पुछल- ''हे माय, कमला माइ किए तमसाएल छथि?''
''अहींक किरदानी सँ'- बजलीह गोसाउनि।
''हमरासँ कोन अपराध भेलनि हे माय!'' राजा अकचकाइन पुछलथिन।
एहि पर गोसाउनि तमसाए कहल- ''सभटा हमरहि मुँहे सुनब? जाउ धारक कछेरमे सिमरक गाछक तर निशाभाग रातिमे एक गोटे भेटत ओ एड ी सँ टिकासन धरि बुझाए देत''। ई कहि गोसाउनि जाए लगलीह। राजा हुनक पयर पकड बा ले धड फड एलाह कि निम्न टूटि गेलनि।

राजा उठि क' बैसि गेलाह। सपनाक सभटा गप्प मोनमे घुरिआए लगलनि। रातुक एगारह बाजल रहैक। ओही राति सपना परतएबा ले' तरुआरि कसि लेलनि। तौनी सँ अपन सौंसे देह झाँपि साधारण लोकक बाना बनाए लेलनि। अनका केकरो नहि संग क' एसकरे कमलाक कछेर दिस विदा भेलाह। हवेली क पछवारी कात छहरदेबारी टूटल रहैक। ओही देने चोर जकाँ हाता सँ बाहर भए गेलाह।
बाहर सौसे भकोभन्न रहैक। ककरो चाल भजार नहि पाबि निश्चिन्त भ' धारक कछेर पहुँचलाह। ओतए एकटा सिमरक गाछ छल। लोक कहल करए जे जहिया कमला माइ एतए बहए लगलीह ओही दिन सँ ई गाछ अछि। ओकर जड़ि ततेक मोट भ' गेल रहय जे चारि गोटे जँ हथ्थाजोडी क' पजियाबए तखनि पओतैक। राजा सिमरक गाछ अंदाजि क' ओत' जएबाक बाट धएलनि। अन्हार मे देखलखिन नहि, ओतए अमती काँटक एकटा झाँङरमे ओझराए गेलाह। तौनी एक दिससँ छोड ाबथि तँ दोसर काँटमे बझि जाइन। एही प्रयास मे लागल रहथि कि तावत कोनो पैघ चिड ै पाँखि फड फड ओलक आ बुझएलनि जेना सिम्मरक गाछपर सँ केओ अथाह पानिमे छप्प सँ कूदल होअए। धार सुखाएल छलै से हिनका बुझले छलनि तें आदंकसँ सर्द भ' गेलाह। एम्हर काँट छुटबे नै कएलनि। गिदरक झुंड सेहो फकसियारी काटए लागल। अंतमे राजा ओहि तौनीकें काँटेपर छोडि अपने मुक्त भ' रोलाह। ओ सिमरक गाछ लगीचेमे रहैक तें घेंघिआइते जकाँ सोर कएलनि- ''सिमर क गाछ तर केओ छह हओ।'' राजाक ई कहितहि एकटा बाझ हिनका दिस झपटल, मुदा माथक ठीक उपर देने दोसर दिस चल गेल। राजा तिलमिलाए गोलाह। पयर थरथराए लगलनि। एतबामे सिमरक गाछ परसँ केओ ठहक्का मारलक आ गरजए लागल- ''आबि गेलह तों। आबहि पड लौक ने।''
राजा कें बुझएलनि जेना केओ डेन पकडि क' धीचि रहल अछि। गाछक जडि मे पहुँचलाह। ओतए एकटा खोपडि छल, जकर मुँहथरिपर एक घैल पानि राखल छलै। खोपडि क भीतर एकटा डिबिया जरि रहल छलै। राजा निहुरि क' देखलनि तँ ओत' केओ नहि रहय। ओ बुझलनि जे जकरा मादे गोसाउनि कहलनि से' कतहु गेल अछि। थोडे कालमे धूरि क' आबि जाएत तखनि ओकरा सँ गप्प करब। राजा ओही खोपडि मे जा क' बैसि गेलाह।
सिमरक गाछ परसँ फेर केओ हँसल। राजा ओहि दिस अकानलनि तँ नजरि गेलनि ओकर एकटा डारि पर, जतए मनुक्खक कंकाल उनटा लटकल छल। ओकर दुनू टा पयर एकटा डारिमे बान्हल रहैक। ओएह हँसि रहल छल।
-''के थिकाह तों, किएक हँसि रहल छह?।'' -पुछलखिन राजा। राजा डेराए गेल रहथि, तैयो अपन कुलदेवीक मंत्र जपैत साहस कएने रहथि।
ओ परेत बाजल- ''दू टा बात एके बेर पुछैत छह मूरख!' पहिने एकटाक उत्तर सुनह। तखनि दोसरक उत्तर कहबहु।''
ओ एक बेर बपहारि कटलक आ बाजल-
''हे राजा, अहाँक पाँचम पुरखाक समयक गप्प थिक। हमर जन्म एकटा मलाहक घरमे भले रहय। हमर बाबा बड़ कलामी रहथि। एक बेर जाल घुमाबथि तँ एक कट्ठा भरि छापि लेथि। एक डूबमे एक धूर मखान बहारि लेथि। आब अछि केओ एहन। केओ नहि; केओ नहि। हमर बापो तेहने। चौरी चाँचरक कमी नै रहै। सभतरि पानिए पानि। उपरमे ओइरी धान आ तरमे खलबल करैत सिंगी माँगुर आ कबै माछ। हमरा माछे भात खाइत मोंछक पमही भेल।
ओही गामक दोसर टोल मे एकटा छौड ी रहै। नाँओ रहै- फुलिया। ओकरा अपन गाममे केओ नै रहै, तें अपन बहिन-बहिनोए लग आबि गेल रहए। ओकरहु चढंतिए छलै। लोक सभ झुट्ठे कहै जे फुलियाक देह इछाइन मँहकै छै। भेटक ढ ेरही तोड ैत काल जखनि ओ डाँड भरि पानिमे चुभकैत हमर लगीच आबए तँ बुझाए जे सौंसे चौरी भेट फुला गेलै-ए। हमहूँ ताकि हेरिक' दू चारि भेटक माला बनाए ओकरा पहिराबए लगियैक कि ओ लाल होइत गाल छिपबैत भागि जाए।'
राजा बिच्चहि मे टोकि देलनि- ''फुलियाक खिस्सा सुनाबए लगलह। ई ने कहह जे तों के थिकह?''
परेत हँसल- ''सत्ते मूरख छह। हओ फुलियाक बिना की हमरा चीन्हि सकबह। सुनह चुपचाप।''
परेत फेर कहए लागल- ''गाममे फुलिया आ हमर बात सभ केओ बूझि गेल रहए। ओकर बहिन सेहो सुनलक। गप्प चललै। फुलिया सँ हमर बियाह भ' गेल। ओही साल कमला माइ सेहो किरपा कएलखिन। एही गाम देने बहए लगलीह। खूब धानो उपजै। माछ मखान भेट, सिंघार, करहर, सारूख ई सभ तँ अलेल रहै। केओ पुछनिहार नहि। ओही सँ लोकक गुजर चलै। जोलहा के एक पसेरी भेटक चाउर आ दू-चारि दिन माँछ दए अबियैक तँ एक जोड़ी सलगा बीनि दिअए। बोचा मियाँक सलगा नामी रहै परोपट्टामे। मजगुत तेहेन जे एक जोड ीमे साल भरि निचेन। धारक ओइ पारमे अखनि जतए तोहर नरै कलमबाग छह, ओतहि सरपतक बोन रहै। ओकरे टाटी-फड की बिनल जाइ। सभ अपन-अपन काज करए; दिन हँसी खुशी बितल जाइ।
राजा बड नीक लोक रहथि। नीक-लोक की बूझु जे सुधंग रहथि। लोक सभ कहै जे राजा कें आँखि छन्हिए नै, काने टा छनि। सोझाँमे कतबो लए लिएक तँ हँसी खुशी दए दैत रहथिन। मुदा परोच्छ मे नहियो लिऐक आ केओ झुट्ठे कहि सुनाबिन तँ बुझू जे ओकरा पर अट्ठाबज्जर खसि पड ै। राजा रहथि कने जीहक पातर। माँगुर माछ जरे अँगूरक दारू खूब नीक लगनि। हम सभ पारी लगा क' बिछलहा मांगुर हवेली द' अबियौ। दारू टा बाहर सँ अबैक। ओकर बदलामे राजा एतए सँ मखानक लाबा पठावथि।
हमर बियाहक तीन बरखक बाद हमर बापो मरि गेलै। तेहेन ने सिंगी बिन्हलकै जे दू दिन जर धाह भेलै आ तकर परात मरि गेलै। सिंगीक जहरक मादे बुझले हएतह। कहाँदन एक बेर अजोध गहुमन अपन बिक्ख खरहीक झाँखुड़मे नेराए चराउर करै ले' गेल। ओम्हर सँ सिंगी आबि सभटा खाए गेलै। गहुमन जे घुरल तँ जहर नै भेटलै, तँ ओ आन्हर भए गेल आ अन्हइ बनि गेल। सिंगीक जहर हमर बाप ले तँ सते गहुमनेक जहर भए गेले। ओकरे फिरिया करम ले' बोचा मियाँक ओत' कप्पा द' समाद पठओलियै त' घरमे बीनल नै रहै। तखनि ओएह कहलकै जे राजाक हवेली पर एकटा पइकार अएलैए। रंग-बिरंग के कपड ा-लत्ता बेचै छै। कपड ा सभ बड पातर छै आ चिक्कन तेहन जेना पुरैनिक पात होइ'। हमरा सभ लग नकदी रुपैया कतए सँ पाबी। से माइक गराक हँसुली कटबन्हकी लगाए ओतहि सँ धोती मङओलियै। ओही बरख पच्छिम सँ आरो बहुत रास पइकार अएलै। भाँति-भाँति के जिनिस सभ लए कें। राजा कें अनदेसी चीज सँ लोभा क' पोटि लेअए आ एही नगर मे बसल जाए। पइकारी खूब चलै। लोक सभ सेहो अनदेसी जिनिसमे परकि गेल रहए। आब बोचा मियाँक कपड ा केओ नै पुछै। सभ नकदी रुपैया हथियबै ले' अपसियाँत रहए लागल। राजाक संगे हुनकर देबान आ आरो हसबखाह सभ ओहने भ' गेल। आस्ते आस्ते ओ पइकार सभ जमैत गेल। बादमे तँ अपनै नियम कानून चलाबए लागल। तखनि राजाकें चाँकि भेलनि। ताबत तँ समय बीति गेल रहै। पइकार सभ गोलैसी क' नेने रहय। ओकर मेंट सँ राजा कें लडाइ भेलनि। मुदा राजा हारि क' जान बचबै ले' रानी के संग ल' कतौ भागि पड एलाह। ओएह पछिमाहा गादी पर बैसल।
अपन घर मे हम तिनिए गोटे रही माए, हम आ फुलिया। हम मखान क तैयारी सुरू कएने रही। ओहि सँ नगदी रुपया आबए लागल रहए। ई राजा भेल तँ ओ मखान के दाम घटाए देलकै। अपन अपन पहिलुका नगरक पइकारक हाथे पानिक मोल बेचि दै आ अपने जे जिनिस बेचए से आगिक मोल। सभक हाल खराप होइत गेलै।
ओहि राजा के कथुक विचार नै छलै। हम सभ कमला माइक अरधना करी तँ चौल करए। कहै जे पहाड़ पर जे बरखा होइ छै आ बरफ गलै छै सएह उपर सँ नीचाँ खँघरै छै ओकरा नदी कहल जाइ छै। ओही मे सँ एकटा के नाओ छियै कमला। ओकर पूजा क' की है तै? ई पूजा-पाठ सभ काहिल आ अमरुख के चलाओल छियै। आर की की ने कुचरए कमला माइक मादे। ओकर देखादेखी अपनहु नगरक धनिकहा सभ हँ मे हँ मिलाबए- खरखाही लूटए। हम सभ की करितहुँ। राजा रहए। केओ किछु नाकर नुकर बाजए तँ भकसी झोकाए मरबाए दै।
एम्हर लोकक ई हालति भ' गेलै जे पाँचो आङुर मुँहमे जाए पर अट्ठाबज्जर। साँझक साँझ उपास पड ए लागल। राजाक दिस सँ चौरी चाँचर बन्दोबस्त हुअए लगलै। जकरा डाक बाजि क' पइकार सभ खरीदए आ ओहिमे बोनि पर हम सब खटी। अपन धंधा सभ चौपट्ट भए गेल। हमर माए जे सेर क सेर भेटक चाउर हँर्सेत बिलहि लै छल, तकरा मरबा बेरमे पाओ भरि खोंछि मे नै दए सकलियै।''
एतबा कहि ओ परेत थोड़ काल चुप्प भ' गेल, आ हिचुकि हिचुकि कानए लगाल। राजा सेहो सकदम्म भेल सभटा खिस्सा सूनि रहल छलाह। ओ किछु बाजए चाहलनि मुदा जीह जाँतल जेना भए गेल रहनि।
ओ परेत दम्म साधि फेर बाजल- ''मायक किरिया-करममे करज चढि गेल। मास दिन पर जखनि मोहनमाला टुटल तखनि जान सँ उपर काज लगलहुँ। सक्क नै लागए। पेट बढि गेल रहए। लोक सभ कहए जे तिल्ली बढि गेल छह। पथ्थो पानि पर आफद तँ दवाइ-बीरो कतए सँ होइतै। हम खटोसल भ' गेलहुँ। सभटा भार फुलिया पर पडि गेलै। तावत एकटा टेल्ह सेहो जनमि गेल रहै। ओकरा कन्हेठने' ओ देवानक हवेली जाए आबए लगलै। काराक बासि सँठले हमरा ले' नेने आबए आ अपने की खाए से नै बुझियै। बाद मे बुझलियै जे हवेलीक अँइठ खाए अपन पेट पोसै-ए। ई बात एक कान दू कान बिराबान भ' गेलै। बिरादरी मे फुलियाक बदनामी हुअए लगलै। हमरा सभ कहए- 'हवेली क काज छोडा दहक।' हम खेंघरा पर ओंघराइत सभटा लहूक घोट जकाँ पियैत रहलहुँ। बैसकीक दामस सेहो देल गेल। मुदा फुलिया के किछ टोकबाक साहस नै हुअए।
किछु दिन जखनि हवेली क सुअन्न खोराकी भेटल, तखनि कने सक्क भेल। एक दिन हमहूँ फुलियाक जरे हवेली पर गेलौ कोनो काज भङै ले। पानि मे पैसए बला काज करबाक साहस नै हुअए।
हवेली पर पहुँचले रही कि एकटा अजगुत खेल देखलहु। उतरबरिया कोठाक असोरा पर कुमर आ कुमरी खाइत रहथि। चेड़ी सभ भाँति भाँति क पकमान सभ चङेरिए चङेरी रखने रहैक। ओही ठाम नीचाँ मे यहाथहि करैत टोल परहक धीयापुता रहैक। कुमर आ कुमरी थार मे एक-एक टा पकमान लिअए। जे नीक लगै से अपने खाए नहि तँ धियापुताक हेंज दिस फेकि दै। दू चारि टा कुकूर से हो ताक लगओने रहै। फेकल पकमान के लुझै ले' जखनि छौडा सभ पछड म-पछडा करए तँ ओहि दुनू क संग चेडि या सभ सेहो हँसए। इएह खेल रहै। एही हेंजमे हम अपन फेकना के सेहो देखलियै। हमरा घिरना भ गेल।
हम अपन फेकना कें डेन धएने धूरि गेलहुँ। फुलिया के सेहो हवेली छोडाए देलियैक। एहि पर फुलिया कने नाकर नुकर कएलक। कहबो कएलक जे हवेली महलमे काज करै छियै। सालमे टू टा फाटलो पुरान तँ भेटि जाइए। चिक्कन केहन रहै छै, जेना भेटक फूल होइ। फुलियो के बोचा मियाँ क सलगा सँ हवेली क फाटल पुरान बेसी रुचए लागल रहैक। मुदा हम कने दमसओलियै तँ मानि गेल।
हवेली तँ छोड ाए देलियै मुदा ओही राति ठकउपासक हालति भ' गेल। फुलिया खूब हनहन पटपट कएलक आ फेर भोकडि पाडि क' कानए लागलि। हमहूँ कनैत कनैत सूति रहलहुँ। रातिमे सपन देखलहुँ जे माएक कोरा मे सूतल छी। माएक माथ पर दुनू कात छही माँछ चमकि रहल छैक। भेटक फूलक माला गरामे महमहा रहल छँक। हम कानि रहल छी, माय चुचकारि रहल अछि। हमरा परतारैत माय कहै छथि जे तों उत्तर नेपाल दिस सुकठीक बनीज करह। खूब उछराए हेतुह।
माएक आढ़ति कतहु बेकार गेलै-ए। से सत्ते कमला माइ हमरा जे बाट घरओलनि से बड नीक लागल। आर चारि-पाँच गोटे के सङोर कएलहुँ। धार मे पानि घटए लागल रहैक। इचना आ पोठीक अबार चलैत रहैक। छानि छानि क' सुखाबए लगलहुँ। सुकठीक बनीज खूब जमल। नेपाल पहुँचिते गामे गाम छिडि या जाइ। दुइए दिन मे एक बोड ा छुहक्का उडि जाए। फेर सभ सङोर क' गाम धुरि आबी।
दू-ए साल मे हमहूँ थितगर भ' गेलहु। बेस जकाँ रुपैया जर भ' गेल। तखनि सभ मीलि क' एकटा पोखरि तेसाला बन्दोबस्त लेलहुँ। भदवारि मे भखान तैयारी करी। मखान तँ अपनहि राज मे बिका जाए।
तेसर साल सुकठी लए के जखनि नेपाल पहुँचलहुँ तँ एक राति एकटा जंगलमे राति भ' गेल। हाथ हाथ नै सुझै। सभक मोन भेल जे एतहि राति बिताबी। लगमे एकटा घराड ी सेहो देखलियै। पानियो के सुपास रहै। ओतहि भानसक इन्तजात बात भेलै। फुलिया ओहि घराड ी सँ आगि माँगि क तँ तेहन गप्प कहलक जे छगुनता लागि गेल। ओ कहलक जे अपन नगर क पुरना राजाजी एतहि रहै छथि। ओ हिनका सभक बोली बानी सँ बुझि गेल रहनि। बाद मे गर सँ रानी जी कें देखलकनि तँ चट चीन्हि गेलनि। हमहँू सभ जाइ गेलहुँ सत्ते ओएह रहथि। सभटा ओहिना अखियास छलनि। हमरा सभ कें चीन्हि गेलाह। आँखि छुटलनि की घैल भ' अएलनि। भरि पाँज क' पकडि लेलनि। राति मे किन्नहु फूट मानस नै करए देलनि।
जखनि गाम घुरि अएलहु तँ राजा जी क गप्प टोल भरिमे कहलियौक। सभ हँ सेरी क तैयारी मे लागि गेल। सहथ तँ सभक घरमे रहबे करए बाँकी एक सय फड सा आ एक सय भाला बनवाए घरे घर छिपाए देलियैक। राजा जी सँ गप्प कएलाक बात जे ठीके दुर्गा महरानी सभक मोन पर सवार भ' गेल रहथि। पछिमाहा राजा कानो कान नै भनक लगलै।
तावत भदवरि सेहो बीति गेल। मखान क गूड ी फोड ैके जोगर मे लागि गेलहु। राजाक एकटा पोखरि मे तेकडी पर मखान उपजओने रही। एकदिन सिपाही आबि क' कहि गेल जे राजाजी अपनै दलान पर सोझाँ मे फोड ओथिन। हम सभटा गूड ी ल' हवेली पर पहुँचलहु। ओतहि फोड ए लगलौं। हमर नियम रहए जे मखान के ढ ेरी सँ पाँचटा पहिलुक फोका कमला माइ के भोग लगा दियनि तकर बाद बाँट-बखरा होइ। थोडेक गूडी फोडै' बाँकिए छल कि तावत रंग मे भंग भ' गेलै।
बड़की रजकुमरी जकर वयस पनरह सोलह छल हेतै, ऐठैत आएलि आ देखिते देखिते मखान क ढेरिये मे हाथ लगाए खाए लागलि। फुलिया एक दूबरे दबले मुहें रोकबो कएलकै मुदा ओ माननिहारि नै। तखनि हमहूँ कने जोर सँ कहलियै जे पहिलुक फोंका कमला माइ कें चढ तनि। अहाँ हाथ लगा देलियै त' सौसे ढेरी अँइठ भ' गेलै। अँइठ क नाम सुनिते ओ भभ क' हँसए लागलि आ कहलक जे हम कि गाए महीस जकाँ ढेरी मे मुँह लगा क' खेलियौए तखनि अँइठ केना भेलै?
''निखनात नै ने रहलै''- कहलके फुलिया।
ई गप्प सप होइए रहै कि ओ चंडलबा राजा हनहनाहत आएल।
- की बकझक करै छें?
-' गोढि बे, बड अँइठ कुँइठ बुझ' लगलहिन-ए। भाँड मे जाथु तोहर कमला माइ। सरबे पंडिताइ झारै छें। चुपचाप काज कर।'- राजा बमकए लागल।
हमरहु एँड ी सँ टिकासन धरि लेसि देलक। सभ सँ बेसी खराब लागल कमला माइ के गरिआएब। भदेस सँ आबि क' केओ हमरा सभक अदौ के बात के नकारि देत, ओकरा पर हँसत ते से केना बरदास्त हैत। एक तँ ई राजा पच्छिम दिससँ जिनिस सभ आनि आनि क' एतुका लोक के कोंढि बना देलक। जखनि मिलहा कपड ा अनलक तकर बाद बोचा मियाँक दुर्गति हमरा देखल छले। ओइ सभ चालि सँ दूहि लेलक ई अइ लोक के। तइ पर सँ आब हमरा सभक' कमला माइ के सेहो गरिआओत। हस सभ जँ कमला माइ क अरधना करिते छी तँ एकरा कोन दालि गलै छै। ई सभटा बात हमरा माथे मे घुमए लागल। हमहूँ तानि क' कहलियै- ''मुँह सम्हारि क' बाजह। कमला माइक मादे किछ अंट-संट बजलह तँ जे ने से भ' जेतह।''
हमर ई गप्प सुनिते ओ चंडलबा राजा जेना बताह भ' गेल। हाक देलकै तँ चारि पाँच टा सिपाही' दौड़ल। ओहिमे सभ अपने जाति भाय रहए। मुदा राजा के एँडी चटनिहार सभ। ओ' सभ डंटा ल' क' हमरा चारूदिस सँ लठियाबए लागल। से देखि क' हमरा आर लहरि चढि गेल। की कमला माइ ओकरा सभक माय नहि छलखिन।
राजाक आढति पर हमरा दुनू गोटे कें रस्सामे बान्हि घिसियौने एही सिमर गाछ तर अनलक। हमरा गाछक एही डारि मे उलटा लटकाए देलक आ हमरा सोझाँ मे ओ पाँचो छबो टा सिपाही फुलिया के नोचि पटकि देलकै।''
एतबा कहि ओ परेत बपहारि काटए लागल। ओकरा कस्साक मारि मोन पडि आएल रहै। पह फाटि रहल छलै'।
राजा उठिक क' घैल सँ पानि ल' कुरुर कएलनि आ खोपडि मे बैसि रहलाह।
परेत फेर बाजल- ''हे राजा आब राति बीति रहलै-ए। आब हमरा चल जएबाक बेर भए गेल। अहाँक दोसर सबाल क जबाब हम काल्हि देब''।
राजा कें भोरहरबा क बसात क सिहकी अलसाए देने छलनि। कने काल ले आँखि मुनाए गेलनि। सुरुजक इजोत पडि ते आँखि खुजलनि तँ ने परेत छल, ने खोपडि , न घैल। सभ किछु अलोपित भ' गेल रहए। ओ सिमरक गाछक जडि मे अपनाकें दूबि पर बैसल पओलनि। कात मे सुखाएल धार साँपक केचुआ जका बूझि पडि रहल छल।
दोसर दिन राजाक मजलिस लागल। दरबारी सभ जुटल रहथि। चर्चा आरम्भ भेल। सभक मोनमे एकेटा चिन्ता; सभक ठोर पर एके गप्प, कमला माइक कोन अनठ भेलनि जे एना निसोख भए गेलीह। पोखरि मे सोह किएक नहि फुटैत अछि'। पानि बेतरेक नगर क हालति खराप भए गेल रहैक। एक टूटा जे रजकूप टेक घएने रहए ओहू सभमे पानि दुइ तीन हाथ खसि पड़ल रहैक। एम्हर बरखा क कोनो टा आस नहि। जखनि हथियो गरजिक' चल गेल मेघ नहि बरसल तखनि स्वाती सँ की आस। राजा घाड झुकओने सभटा सुनैत चुपचाप बैसल छलाह।
एही बीच दरबान इतलाए बाजल फाटक पर चारि गोटे ठाढ छथि। सरकार सँ भेटँ करए चाहैत छथि।' राजा कहल- ''हाजिर करह।''
थोड ेक कालमे ओ चारू गोटे आबि राजा कें सलामी दए कात मे ठाढ भए गेलाह। एक गोटे डाँङसँ एकटा चीठी निकालि राजा के देलनि। राजा चीठी पढि जखनि राखि देलनि तखनि ओ बजलाह-
''सरकार अपनेक नगर से हम सभ अपनेक आदेश सँ हवा-मिठाइक बनीज करैत छी आ ओकर कर ठीक समय पर खजानामे जमा करैत छी। एहि नगर क धियापुताई हवा मिठाइ किनैत अछि। ई हवा-मिठाइ बनाए कोन धरानिए अपन नगर सँ अनैत छी से सरकार कें की कहब। हमरा नगर क रानीजी सरकारक बहिन थिकीह। एही बेर भरदुतिया मे जएबा मे कोन कष्ट भेल रहए से जनैत होएबैक। चारि टा धार तँ नाह सँ टपए पडै छै। ऐते तरदुत उठाए हम सभ एतए बनीज करैत छी जे दुइ एक सेर धान जर करी आ एहि नगर क धियापुता लिलोह नै हुअए। मुदा........।
''मुदा की?'' -राजा पुछल।
-''हम सभ सरकार क जुत्ता तर छी। किछु ऊँच नीच बजना जाए तँ जान बकसि दी।'' दाँत निपोड ैत ओ पइकार बजलाह।
-''निडर भए कहू।'' राजा गंभीर होइत बजलाह
-''सरकार क खास आदमी हमरा सभ क बनीज के भुस्साथरि बैसाबए चाहैत अछि। हमरा सभक पेट पर लात मारए चाहैत अछि। तैयो.........।''
-''तैयो की? खुलासा बाजू''। राजा तनि क' बैसलाह।
-''तैयो जँ केवल हमरा सभक बनीज के भुस्साथरि बैसाए हुनकर हिया जुड़ा जानि सँ हमसभ बिना किछु गलगुल कएने दोसर नगरक बाट धए लेब। मुदा ओकर छओ कतहु पाओ कतहु छैक। ओ चाहैत अछि जे एही बहाना सँ सरकारक ठोरक लाली छीनि ली। हमर नगर सँ सरकार क हबेली मे जे किछु वस्तुजात अबैत अछि, ओहि सभ लेल सरकार कें लिलोह कए दी। बाहरी दिन दुनियाँ सँ सरकारक लागि तोडि दी। ताहू सँ बढि क क' एकटा भाइ बहिनक सिनेहक डोरी के झटकि तोडि दी''।
राजा चौंकलाह। थोड बे काल पहिने अपन बहिनक चीठीमे पढ ने रहथि जे सरकार बड बिगड ल छयि। तखनि तँ अर्थ नहि लगलनि मुदा आब बुझि गेलाह। राजा कें चुप देखि ओ पइकार फेर बजलाह-
''हमर नगरक राजाजी बड बिगड ल छयि। रानीजी सँ चिठी लिखाए हमरा सरकार क सोझाँ हाजिर भए नौ छौ करबाक आढ ति देलनि अछि। आगाँ सरकार क आढ ति माथ पर''।
-''के अछि ओ हरामी, जे एहन काज क' रहल अछि''।
राजा बमकलाह। लोहा तपि चुकल छल। हथौडा क चोट दए तरुआरि बनएबाक ताक भए गेल रहै।
-''सरकारक खास आदमी अछि। केसो साहु। हवेलीक खास हलुआइ''।
-''केसो साहु? ओ तँ बड नीक लोक अछि।'' -राजा कें आश्चर्य भेलनि।
-''सरकारक आबेस पाबि ओ अपना कें नल महराज आ धन्वन्तरि वैदराजहु सँ पैघ बुझए लागल आछि।''
-''ओ की कएलक से खोलासा बाजह।'' राजा कने उत्तेजित भए गेलाह।
तुरत केसो साहु बजाओल गेलाह। तखनि ओ पइकार बजलाह- ''हमर सभक हवामिठाइक ई देखसी क' बेचैत छथि। हमसभ एक पसेरी धान मे जतेक बेचैत छी, ओतेक ई एके अढ़ैयामे बेचि दैत छथि। हमसभ मुहें तकैत रहि जाइत छी।''
केसो साहु सें पूछल गेल तँ ओ बाजल-
''ई ठीके कहैत छथि। एक दिन हमर नाति एक झोडी हवामिठाइ किनलक तँ दुइ चारि टा हमहूँ चिखलहुँ। सुआदलहुँ तँ बुझि गेलियै जे ई मखान क लाबा के बनल छै। ओकरा चीनीक सिरकामे पागि क' रंग मिलाए झोडीमे सीबि क' बेचैत छथि। तखनि हमरा ओ बड महग बुझाएल। एक दिन अपन नाति ले' अपनहि सँ बनओलहुँ। तकर बाद आढ ति पर सँ आढ ति आबए लागल। हमहूँ घानी पर सँ धानी बनबैत गेलहु। इएह बात छियै सरकार''।
केसो साहु चुप भए गेलाह। ओ पइकार एक गोटे दिस संकेत करैत उतराचौरी आगाँ बढाओलनि- ''सरकार, ई छथि हमरा नगर ओ हलुआइ जे पहिले पहिल ई हवामिठाइ बनओलनि। आ संगहि दोसर छथि हमरा सभक वैद्यजी; जे ओहि मिठाइमे एहन दवाइ फेंटैत छथि, जकरा खएला सँ तागति बढैत छैक। बहुत तरहक बिमारी सँ सुरक्षा होइत छैक। हमरा सभक हवामिठाइक बिक्री घटला सँ एहि नगरक धियापुता ओहि दवाइ सँ वंचित रहि जाइत अछि आ हिनक बनाओल लाबा खाए ठकल जाइत अछि। तें एहन ठक कें सजाए देल जाए। आगाँ सरकारक आढति माथपर'।
केसो साहु राजाक खास हलुआइ रहथि। हुनकहु अपन लूरि पर गुमान रहनि। तें ओहो हारि मानि चुप बैसनिहार नहि।
-'सरकार, हमरे नगरमे उपजल मखान' कें माटिक मोल कीनिक' ओकरा ई लोकनि आगिक मोल बेचैन छथि। जतेत हवामिठाइ ई एक पसेरी धानमे बेचैत छथि, ओतेक मखान तँ एतए लोक मङनीमे बिलहि दैत अछि। चीनी बड़ थोड लगै छै। ओकरा सोन्हगर बनबै ले' हम कचूर दैत छियैक, जे सभ ठाम बाडी-झाडीमे अलेल उपजे-ए। एहन मिठाइक बदला मे मेहनति सँ उपजाओल एक पसेरी धान आन नगर चल जाइत अछि से हमरा नहि सोहाएल, तें हमहूँ बनबए लगलहुँ। टटका-टटकी बनबै छी। टटका के परतर हिनकर हवामिठाइ कत' सँ करतनि। नै जानि कते दिनुका बनलाहा रहैत छनि।
एतबहिमे हवेलीक घंटा बाजल। सभक भोजनक समय भए गेल रहनि। तें राजा कने अगुताइत पइकारसँ पुछल अहाँकें आर जे किछु कहबाक हो से कहि दिय'। हम विचार करब आ जा धरि कोनो नौ छौ नहि भए जाइत अछि ता धरि हवामिठाइक बनीज नहि हुअए। केसो साहु सेहो ओ मधुर नहि बनाबथि'।
ओ पइकार बजलाह- ''हमर हवामिठाइमे सहरगंजा रंग नहि मिलाओल जाइत अछि। ओ रंग हम बनारस सँ मङबैत छी। नेपालक जंगल छानि क' आनल जडी बूटी सँ ओकरा सोन्हगर बनबै छी। जाहि झोडीमे बन्न कए ओ बेचल जाइत अछि से कलकत्ता सँ अबैत अछि। ओहिमे बन्न कएलाक बाद बासि-तेबासिमे कोनो अन्तर नहि पडैत छैक। मासो दिनका बाद ओहने रहैत अछि। एहि सभमे खर्च पडैत छैक, तरदुत होइत छैक। तखनि एक सेर धानमे एक झोडी बिकाइत अछि। सरकार कें बेसी कहबाक काज नहि। बुधियार कें कनखिए काफी। तखनि तँ सरकारक आढति माथ पर।''
ओ पइकार चुप भए गेलाह। राजाक मजलिस टुटल। राजा चुप्पे अन्नर दिस बढ़ि गेलाह, जतए चेड ी हाथ-पयर धोबा ले सोबरना नेने ठाढि छलि।
दिन बीतल; साँझ पड ल; सूर्य अस्त भेलाह; राति भेल। राजाक छातीक धुकधुकी बढ ैत गेलनि। पछिला रातुक एक एकटा गप्प मोन पडैत छलनि तँ रोइयाँ ठाढ भए जाइत रहनि। सिमर गाछपर उनटा लटकल ओ परेत आ ओकर हँसब बाजब आ कानब, सभटा आँखिक सोझाँ नाचि उठनि। बुझाइन जे ओ कोनो दोसर लोकमे आबि गेल होथि। एसकर होइतहि राजा एहि लोकक सभटा बात बिसरि जायि।
अनमनाएले जकाँ राजा रातुक भोजन कए जखनि अपन कोठरी अएलाह तखनि दस बाजि रहल छल। सिमर गाछ तर जएबाक बेर लगिचाए गेल रहनि ते छाती क धुकधुकी आर बढि गेलनि। एक मोन मेलनि जे आइ नहि जाइ मुदा फेर दोसर मोन तुरत चेतौनी देलकनि जे नहि गेला सँ जँ कहूँ ओ परेत खिसिआए गेल तँ किछु क' सकैए। सँगहि इहो मोन मानि गेल रहनि जे गोसाउनि जकरा मादे कहने रहथिन से ओएह परेत थिक। तखनि जँ परेतक समटा गप्प नै सूनि लेताह तँ कमला माइक रुसबाक कारण आ बौंसबाक उपाय केना बुझताह। तें जाएब तँ आवश्यक छलनि।
समय बितल जा रहल छल। राजा पलंग पर पड़ल टकटकी लगओने घड ी दिस देखि रहल छलाह। राजा कें घड ीक प्रतीक्षा जतेक नै छलनि, ओतेक छलनि रानीजीक सुति रहबाक प्रतीक्षा। तें अपन छाती पर राखल हुनक बामा हाथक कँगनाके कखनहु खनखनाए बुझबाक प्रयास कए लेथि जे ओ सूति रहलीह कि जगले छथि।
जखनि बेस काल धरि राजा सूइल सँ पाइत धरि आ पाइत सँ सबरब धरि सोहरओलनि आ रानी नहि सगबगएलीह, तखनि गँओसँ हुनक हाथ अपन छाती पर सँ हँटाए कात कएलनि। रानीजी कें नीक जकाँ देखलनि तँ बुझएलनि जे ओ सूतलि छथि। राजा निश्चिन्त भए पलंग सँ उठलाह।
कामदार कपड ा सभ खोलि सहरगंजा मिरजइ आ धोती पहिरलनि। खुरिया खोंसलनि आ कोठलीक केबाड खोलए बढ लाह कि रानीजी भभा क' हँसैत पलंग पर बैसि गेलीह। राजा थकमकाए गेलाह।
रानीजी झटकि क' हिनका आगाँ आबि ठाढ भए गेलीह। हुनक खूजल केस भुइयाँ लोटाए लागल, काड ा खनकि उठल, डँडकस मचकि गेलनि, केचुआ मसकि गेलनि, घोघट ससरि गेलनि, पसाहिन चमकि उठल, लट गमकि उठल, दुनू ठोर थर थरएलनि आ आँखिक दुनू कोर सँ दू बुन्न नोर गाल पर पिछडि गेल।
रानीजी बजलीह- ''राजाजी! राजाजी! एते राति क' के मोन पड़लीह कजराबाली कि गजराबाली! मुजराबाली कि बजडाबाली! राजाजी! कतए विदा भेलहु चुप्पेचाप। राजाजी! रूपाके दियामे पाटक टेमी जरौलौं, सोनाके कजरौटीमे कजरा जे पाड लों, से कजरा नोर सँ धोखरल जाइए यौ राजाजी! कोस भरिक फुलवारी सँ सोनजडी अँचरामे फूल जे बिछलियै, भौंरा कि मधुमाछियोक सूँघल फूल नै छुबलियै, खुरचनक टकुरीसँ बाडीक बाँङके सूतो कटलियै, ओहि सूतक तानीमे गजरा गँथलियै। अहाँक हाथक छुतियो ने भेलै; सिरमामे डाला पर पुरैनिक पतौडामे रखले मौलाए गेलै यौ राजाजी! ओहो कजरा, ओहो गजरा रूचल नै अहाँ के यौ राजाजी! तखनि आब नयनाके नोरसँ हियाके दिया जरएबै, सुन्न अकासक कजरौटीमे पाडल कजरा लगेबै, इन्द्रक फुलवारीसँ लोढ ल फूलक गजरा गँथबै, चचरीक बजडा चढि संसारक समुद्र नाँघि ओहि पार जेबै, इन्द्रक फुलवारीक एक कोनमे अहाँक नामक आसन लगेबै, आसनक आगाँमे मुजरा लगेबै। ओतए तँ अहाँ अएबै ने यौ राजाजी!''
रानीक आँखि सँ दहोबहो नोर झहरए लागल। राजा कें अकबक किछु नहि सुझाइन। असल बात कहि रानीजी कें डेरबए नै चाहैत रहथि। तखनि किछु कहि परतारि क' चलि दितथि से कठिन छलनि। ओ दूधक धोएल तँ छलाह नहि जे हुनक बात पर रानीजी कें विश्वास भए जैतनि। एहिना कतेक राति ठकिफुसिया क' गजराबाली कि कजराबालीक दुआरि नाँधि चुकल छलाइ। तें ओ अस्त्र सभ आब रानीजी ले' व्यर्थ भ' गेल छल।
राजा बजलाह- ''हे धनि! जुनि कानू । गोसाउनिक सीर पर बरैत दीप अहाँ छी। नगरक कोन-कोनमे जरैत अंडी तेलक उकारी सँ सौतिनिया डाह किए करै छी? आश्विनी सँ रेवती धरि तारका सभक भोग कएनिहार चन्द्रमा की अपन चन्द्रिकाके छोडि दैत छथि। हे धनि, अग्निक ज्वाला, जलक शीतलता, आकाशक शून्यता जकाँ अहाँ हमर छी, जकरा बिना कजराबाली कि गजराबालीक कोनो मोल नै। मुदा एखनि तँ ओकर चर्चे व्यर्थ। हम तँ आइ दोसर काजसँ जा रहल छी। एकटा आवश्यक राज कार्य भए गेल अछि।
- ''एतेक राति क'?'' रानीजी कें जेना विश्वास नै भए रहल छलनि।
- ''हँ धनि, आफदक बेर मे की राति आ की दिन?''
- तखनि कपड़ा छाड बाक कोन काज?'' रानी जिरह करए लगलखिन।
राजाक चोरि पकड ा गेल। एकर कोनो जबाब हुनका लग नहि बँचल। अन्तमे राजा थाकि हारि सभटा खेरहा सुनाए देल।
रानी बजलीह- ''हमरहु सँ छल कएलहुँ राजाजी! मुदा आब पछिला चूकक गप्पे कोन? आइ हमहूँ जाएब अहाँक संग।''
''अहाँ?'' -राजा कुदि उठलाह।
- ''हँ राजाजी! भूत-परेतक मुँहमे एसकर केना जाए देब। अहाँक रक्षा लेल हमहुँ जायब।''
- ''हमर रक्षा अहाँ करब?'' राजा के रानीक ई गप्प ओहिना अनसोहाँत लागि रहल छल जेना ओ पुरैनिक पातक ढाल ल' लड ाइमे जएबाक गप्प कहि रहल होथि।
- ''हँ राजाजी! बियाहक साल सुखराती निशाभाग रातिमे नानीसँ जे सिखलहुँ से आइ नै तँ कहिया काज देत?''
राजा कें सभटा रहस्यमय बुझा पडि रहल छलनि। रानीक एतेक आत्मविश्वास! सुुखरातीक निशाभाग रातिमे सिखबबाक बात सुनि राजा कें ठकमूड ी लागि गेल।
- ''एना की तकै छी? हमर नानी की सभ जनै छलीह आ हमरा कते सिखओलनि से आइए परताए लिय'। अपन टोना-टापर सँ हम एहन घेराबा बनाए लेब जकर भीतर परेतक बापो किछु नहि कए सकत।'' रानीक मुट्ठी तनि गेल।
- ''मुदा जाएब केना? पहरूदार बुझि जाएत तँ सौसे घोल भए जाएत तखनि एक-एक के सभ संग लागि जाएत।
- ''केओ नहि बुझत। थम्हू कने। हम सभटा जोगाड़ धराए लैत छी।''
रानीजी केबाड खोलि फुलबाड ी पैसलीह; ओतए एकटा पैघ सन मएनाक पात तोड लनि। भनसाघर गेलीह; पिठार पिसलनि आ आबि गेली झट द' राजाक लग; मएनाक पात पर अरिपन देलनि। अपनहु ढाढ भ' गेलीह आ राजाजी कें सेहो सटि क' ठाढ होएबा ले' बजओलनि। गेंठ जोड लनि; किछु मन्त्र पढ लनि आ ओ मएनाक पात धरती सँ उठल आ खुजल केबाड देने आङन आएल आ अकासमे उड ए लागल। रानी पुछलनि- ''डर तँ ने होइ-ए?''
- 'नहि, आब सभ डर बिलाए गेल।'' राजाजी सभ किछु समर्पण कए देलनि।
ओ मएनाक पात दुनू कें थम्हने अकासमे उड़ल जा रहल छल। रानीजी बेर बेर पुछथिन्ह- ''ओ सिमरक गाछ केम्हर छैक?''
राजा कें दिसाँस लागि गेल रहनि। एक तँ रातिक समय, निचला घर-आङन, गाछ-बिरिछ किछु सुझि नहि रहल छलनि। ताहि पर सँ आकाशमार्ग देने यात्रा। से जएबाक छलनि पूब दिस, देखाए देलखिन पच्छिम दिसक बाट। रानीजी ओम्हरे इसारा कएलनि; ओ मएनाक पात ओम्हर उड ए लागल। जखनि किछु दूर गेलाह तँ एकटा खूब चतरल गाछक अछाह बुझएलनि। ओकरहि सिमरक गाछ बूझि दुनू गोटे ओतहि धरती पर अएलाह। मुदा ओ सिमर नहि पाकडि क अजोध गाछ छल।
राजा चिंतित भए गेलाह। अन्हार राति चारुकात भकोभन्न। कतए आबि गेल छी सेहो ज्ञान नहि रहलनि। बिना प्रकाशक संचारसे कोनो उपाय करबामे अपनाकेँ असमर्थ बुझलनि। आकाश स्वच्छ छल तेँ राजाकेँ अष्टमीक चन्द्रोदयक आस जगलनि। चन्द्रोदयमे किछु बिलम्ब रहैक तेँ ओकरे प्रतीक्षा करैत दूनू गोटे असोथकित भए ओही पाकडि क एकटा धोधडि मे सोनचिड ै दूनू परानी रहैल छल। राजा आ रानी जखनि ओतए बैसलाह तँ चिडै बाजल हे धनि, आइ देखू जे केहेन हमरा सभक भाग जोड गर अछि जे एक दिस हमरा सभक सन्तान हुअ' बला अछि आ दोसर दिस एहन अभ्यागत आबि गेल छथि। हमरा सभके चाही जे हुनकर स्वागत सत्कार करी'।
राजा नीचामे बैसल दुनू परानीक गप्प सुनए लगलाह। चिड़िन बाजलि- ''हँ ठीके कहलहुँ। एक तै बच्चा हुअए की बूढ , जबान हुअए कि बेसाहु, घर पर पहुचल अभ्यागत देवताक रूप होइत छथि, ताहूमे ई तँ एहि नगरक राजा आ रानी छथि सेहो बाट भोतिया क' एतए आबि गेल छथि तेँ जते धरि भ' सकए से हुनकर सत्कार करियौन। दुःखक बात ई जे हमरा आइ बिछाओनहु पर सँ उठबाक सक्क नै लगै-ए।तें हुनका दुनू सँ आशीर्वादो लै ले' हम नै निकलि सकब।''
- '' अर तँ जे से...। सभसँ तँ चिन्ता अछि जे की ल' क' सत्कार करबनि? आइ जे हम जर क' अनने छी से एक तरहें अँइठे अछि।'' चिडै बाजल।
- ''झोडी तँ ओहिना मुनले छैक तखनि अँइठ केना भेलै? लोल सँ पकडि के जे अनने छी तेँ अँइठ कहै छियै की?'' चिडि न पुछलकै।
- ''नै से बात नै छै। ई मनुक्खक अँइठ थिक।''
- ''कत' सँ अनलहुँ?''
- 'हे धनि, आइ हम अहलभोरे अहाँ ले' कोनो बढ़ियाँ सनेसक खोजमे निकलहुँ तँ इच्छा भेल जे इन्द्रासनक फुलबाड ी जाए ओतहि सँ कोनो सोन्हगर फल नेने आबी। उडैत उडैत ओतए गेलौं तँ ओकर रखबार हमरा एसकरे देखि भीतर पैसबा सँ रोकि देलक। ओ कहलक जे एहि फुलबाडीमे बिना अपन प्रियाके केओ नै जाए सकैए। की देवता, की गन्धर्व आ की पशु-पक्षी, एसकर मुँह बिधुअबैले' एतए टपि नै सकै-ए। तखनि हम अपन सन मुँह नेने धरती पर घुरि अएलहुँ आ एतहि एहि नगर सँ ओहि नगर बौआए लगलहुँ। जाइत-जाइत एक नगर पहुँचलहुँ। ओ नगर एतए सँ पच्छिम अछि। ओतए राजाक अटारीक पछुआड मे ई हवामिठाइक झोडी सभ मारते रास फेकल देखलियै। पहिने तँ हमरा सक भेल जे कहूँ कोनो जाल-फाँस तँ ने बिछाओल छैक। थोडेक काल एहि गाछ सँ ओहि गाछ चकभाउर दैत रहलहुँ। देखलियै जे कौओ सभ निघोख भए एक एकटा झोडी उठाए रहल अछि तखिनि हमरहु कने हिम्मत बढ ल। मुदा फेर सोचलहुँ जे पहिने एहि हवा मिठाइक सम्बन्ध मे सभटा भजिया ली। सन्देह भेल जे एत' ई फेकल किए गेलै? कहूँ जहर माहुर तँ ने मिझहर भए गेलै? संयोग भेल जे एकटा कौआ ओहि हवामिठाइक झोडी लूझि क'ओही गाछ पर बैसल जाहि पर हम रही। हम ओकरा सँ पुछलियै तँ ओ कहए लागल-
''तों दूर देससँ आएल बुझाइत छह तेँ किछुनै बुझल छह। आइ एक माससँ सौंसे नगरमे घरे-घरे ताकि क' ई फेकल जाए रहलै-ए।
-''किए फेकल जाए रहलै-ए?'' -हम पुछलियै।
-''किए फेकल जाए रहलै-ए?'' -हम पुछलियै।
-''किछु नै बुझल छह? तखनि सुनह चुपचाप। करीब एक मास भेल हेतै। रजकुमरीके मोन खराप भए गेलैक। एकटा वैद अएलै। ओकर दवाइ गुन नै कएलकै। दोसर अएलै। तेसर अएलै। एहिना वैद सभक धरड़ोहि लागि गेलै मुदा रजकुमरी निकें नै भेलै। तखनि बहुत दूरके नगरसँ एकटा वैद अएलै। ओ रजकुमरी के मादे च-तु-के सभटा पुछारि कएलकै। की की खाइ ए; कतए कतए घुमै-ए; कोन कोन कपड ा पहिरै-ए; सभटा जखनि भँजिया लेलकै, तखनि जे दवाइ देलकै तेँ दुइए दिनमे रजकुमरी टनमना गेलै। ओएह वैद कहलकै जे ई झोडीमे बन्न हवामिठाइ खएला सँ भाँतिके गरू हेतै। ओएह राजाके कहलकै जे सभके मना कए दियौ जे ओ हवामिठाइ नै खाए। राजा ओइ वैदक करामात देखि नेने रहए तेँ विश्वास भ' गेलै। तहिया सँ अइ नगरक लोक केओ ई हवामिठाइ नै खाइए।
- ''तखनि तँ हलुआइ सभक लोटिया बुडि गेलै!'' हम कहलियै।
- ''नै बुड लै। राजा एकटा तरकीब निकालि लेलकै। राजा कहलकै जे ओ हलुआइ सभ ई सभटा हवामिठाइ आन आन नगरमे जाए बेचत। एहि राजाके सासुर एतए सँ दस कोस पूबमे छै। ओतए तँ खूब पैकारी जमि गेलैए।''
गाछक तरमे बैसल राजा चौकलाह। सोनचिडै हिनके नगरक मादे कहि रहल छल। हवामिठाइक पैकारी ठीके हिनकर नगरमे खूब जमि गेल छलनि। राजा आर कान पाथि कए ओहि सोन चिड ैक गप्प सुनए लगलाह। सोनचिडै कहि रहल छल- ''हे धनि, सएह कहैत छी जे जखनि केओ ओहि हवामिठाइक भोग कएनाइ छोडि देलक, तखनि तँ ओकरामे आ अँइहमे कोन अन्तर? निछरल वस्तुके अँइठ नै कहबै तँ ककरा कहबै। तेँ कहै छी जे एहन अँइठ वस्तु लए राजा-रानी सनक अभ्यागतक सत्कार केना करब।
- ''तखनि की करी?'' चिड़िन पुछलकै।
- ''सएह तँ हम अहाँसँ पूछै छी?''
- एहि पर चिडि न बाजलि जे राजा आ रानी अन्हारमे भोतिया कए एतए आबि गेल छथि, से अहाँ जाइ हुनका रस्ता देखा दियनु। बड प्रसन्न हेताह। आ ई एकटा ठहुरी सेहो दए देबनि। ई हम इन्द्रासनक फुलबाडी सँ अनने रही। एकर चमत्कार छै जे मुइल लोक, कि हड्डियोमे जँ ई ठहुरी भिडा देल जाएत तँ ओ जीबि उठत।''
ई सुनैत देरी राजा खुशी सँ नाचि उठलाह। अखनहु चन्द्रमाके उगैमे किछु देरिए छल, मुदा अन्हार कने कम भए गेल रहै। एही समयमे ओ चिडै गाछ पर सेँ उतरल। आबि कए राजारानी केँ प्रणाम कएलक आ इन्द्रासनक फुलबाड ी सँ आनल एक बीतक एकटा ठहुरी राजाक हाथमे देलकिन। राजा ओ लए माथ चढाए मिरजइमे खोंसलनि। तकर बाद ओ चिड ै कहलकनि-
- ''हे राजा! हे राजा! अहाँ सभकेँ कतए जेबाक अछि? कहू तँ बाट देखाए दी।''
राजा ओहि सिमरक गाछक नाम लेलनि तँ ओ चिडै आगाँ-आगाँ उड ल। रानी सेहो मएनाक पात हँकलनि आ सिमरक गाछतर पहुँचि गेलाह।
तावत धरि अष्टमीक चंद्रमा उगि गेलाह। साँसे बाध इजोरिया पसरि गेल। धरतीक फाटल दरारि सेहो देखा पड ए लागल।
सोनचिड़ै केँ घुरि जेबा ले' कहि रानीक सँगे राजा खोपड ीमे जा बैसलाह। पछिया रातिसे खोपडि यो बेसी नाम-चाकर रहैक। एतबे नहि ओहि दिन पुआरक सेजौटक बदलामे गादी आ मसनद सेहो लागल रहैक। रानी कहलथिन- ''राजा जी! ई कोनो छोट-छिन परेत नै छी। एकर आत्मा बहुत दिन सँ बौआए रहल छै। एकर उद्धार अहाँकेँ करबाक हएत।''
राजा पुछल- ''केना उद्धार होएतैक से कहू।'' 
रानी उत्तर देलनि- ''मरबाक काल एकर जे ममोला छल होएतैक से जँ पूरा भए जाइ तँ एकर उद्धार भए जाएत।
दुनू गोटे परेतके अएबाक समयक प्रतीक्षा करए लगलाह। परेत आएल। फेर ओ ओहिना उलटा लटकल छल। ओतहि सँ दुनू गोटेके प्रणाम कएलक आ बाजल- ''हँ, तँ सुनह हओ राजा। काल्हि राति हमरा हँसी लागि गेल रहए। तकर कारण सुनह। तोहर परदादा अपना जिबैत राज हासिल नै कए सकलखुन ओ अपने नेपालेमे जान गमओलनि। हुनकर बेटा बहुत दिन धरि लड ाइ करैत रहलाह तखनि जीत भेलनि। ओ पछिमाहा चण्डलबा राजा मारल गेल। ओकर लोक सभ अपन नगर भागल। नवका राजा जखनि गद्‌दी पर बैसलाह तँ एतुका अपन रोजगारके खूब सह देलनि। गरीब गुरबा धन्य-धन्य भए गेल। एहन रहथि ओ राजा। मुदा हुनके सन्तान भए तों अप्पन बोली-बानी, भेष-भूषा, चालि-चलनि सभटा बिसरि गेलह। हओ, देखसी पर कतेक दिन चलएबह ई राजपाट। हओ पछिमाहा दारू आ दछिनाहा बुलकीबालीक संग रभसैत काल कहाँ कोनो बाधक रखबार मोन पड ैत छह। काल्हि केना मोन पडि गेल रहह ई कमलाक कछेरक ई सिमरक गाछ आ ई पाँच पुस्तके समयसँ उनटा लटकल एकटा गोंढि ! तेँ हमरा हँसी लागि गेल रहए।''
रानीक आँखि सँ दहोबहो नोर बहए लागल। राजा सेहसे अपना के सम्हारि नै सकलाह; हिचुकए लगलाह- ''हे कमला माइक सपूत, आइ अहाँ हमर आँखि खोलि देलहुँ। हम एतए बन्धनक तरमे सप्पत खाइ छी जे अप्पन बोली-बानी; चालि-चलनि, भेष-भूषा नै छोड़ब; अनकर देखसीपर नै उड ब। हम सप्पत खाइ छी। मुदा अखनि हमर राजक प्रजाके बचाउ। प्रजा पानि-पानि क' मरि रहल अछि। अहाँ चलू। अहाँ गोहारि लगाएब तँ कमला माइ घुरबे करतीह। हमरा सन पतितसँ कमला माइ सत्ते रूसि गेल छथि। अहाँक बात ओ नै कटतीह।'' एतबा कहि राजा उठलाह आ सोनचिड ैक देल ठहुरीसँ ओहि परेतक ठठरीके हँसोथि देलनि। थोड बे कालमे सत्ते ओ परेत एकटा कठमस्त जुआनक बानामे उलटा झुलए लागल। राजा सिमरक गाछपर चढि ओकर पयरक बन्धन खोलि देलनि। मनुक्ख बनल ओ परेत राजा क आगाँमे कर जोडि ठाढ गए गेल। राजा ओकरा भरि पाँजमे ध' लेलनि।
तीनू गोटे पयरे महल घुरि अएलाह। पूब दिशा सिनुराए रहल छल। कमला माइक ओ सपूत कर जोडि ' राजा आ रानी केँ कहए लगलनि-
'' हे राजा, हे रानी, जहिया परेत बनि घुमैत रही तँ मोन होअए जे अइ जिनगी सँ उद्धार भए जाइत, मुदा नहि आब नै। आब हम सभदिन परेते बनि क' रहए चाहै छी। कमला माइक अइ कोरा सँ बेसी सुख कतौ नै भेटत। हम एतहि रहब परेते बनल रहब। जहिया जहिया कमला भाइ रूसि जएतीह तहिया तहिया हुनका बाँसब। हमर बात मानती नै ते कि? आ हमरे किए? सभक बात मानतीह। माय कतौ बेटा सभसँ रुसलै-ए। ओह बतहियाके की बेटा सभक बिना चेन भेटतै। ओ रूसल नै अछि। हे देखू ने, हम बौसे ले' जाइ छी मुदा हे राजा, हे रानी, सप्पत मोन राखब।''
ओ मनुक्ख बनल परेत बताह जकाँ नाचए लागल आ खुनाओल जाइत पोखरि दिस दौड़ल। पोखरिक मोहारपर पहुँचल आ' चिकड ए लागल- ''घुरि आउ कमला... घुरि आउ कमला...।'' आ फेर भोकाडि पाडि कानए लागल। बड ी काल धरि कनैत रहल आ फेर एक उझुक डाकनि देलक- ''नै अएबें ते' हमहूँ कहियो ने तकबौ कहियो नै।''
मोहारपर भीड लागि गेल। लोक ओकरा निछट्ट बताह बूझि रहल छल। थोड बे कालमे लोक देखलक जे पोखरिक बीचमे नीचा सँ पानिक बमकोला छुटलै आ देखिते देखित आधा पोखरि पानि सँ भरि गेल। संगहि लोक देखलक जे ओ बतहा दौड ल दौड ल गेल आ ओहि पानिमे कूदि गेल। ओ ओतहि सँ चिचिआए- ''लागल धुरि अएलीह कमला!!''
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