शुक्रवार, 19 नवंबर 2010

धरती बचाने की जद्दोजहद

जलवायु परिवर्तन पर गंभीर नेपाल का मिथिलांचल
 देश में भयानक अकाल पड़ा था. किसान दाने-दाने को मोहताज थे. इंद्रदेव को
तरस नहीं आ रहा था. तब रजा जनक ने परती जमीन में हल चलाया. धरती की कोख से निकली सीता मैया. खूब बारिश हुई और धरती ने ओढ़ ली धानी चुनरिया...
खतरे में सगरमाथा
१५ किमी की यात्रा साइकिल से तय करने के बाद भी ६२ वर्षीय रामप्रवेश यादव के चेहरे पर थकान के कोई भाव नजर नहीं आ रहे थे. नवंबर का महीना था लेकिन धूप में तल्खी थी. रामप्रवेश के माथे पर पसीने की कुछ बूंदें उभर आयी थी, जिसे पोंछकर वे जनकपुर के देवी चौक के छेना मंडल की चाय दुकान में घुसते हैं. वे लोगों को बताते हैं कि नवंबर की धूप में इतनी तल्खी क्यों है. वे लोगों को बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन पूरी दुनिया को निगल जायेगा. और तब इस सुंदर मिथिला और सुंदर नेपाल का क्या होगा. क्या होगा संसार की सबसे ऊँची चोटी सागरमाथा का. इस संकट से दुनिया को उबरना है, तो लोगों को जागरूक होना पड़ेगा.
रामप्रवेश जनकपुर से 15 किमी दूर महिनाथपुर गाँव के रहने वाले हैं. जनकपुर आना-जाना लगा रहता है. महिनाथपुर से जनकपुर आने वाले रामप्रवेश जैसे कई लोग हैं जो आज भी साइकिल या पैदल आते हैं. गाँव से बस, टेम्पो चलते हैं. जयनगर{भारत} से जनकपुर जाने वाली ट्रेन भी गाँव होकर गुजरती है. लेकिन रामप्रवेश कहते हैं कि हम अपपनी आदतें बदल कर जहरिली गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकते हैं. अगर हम जल्द ही सावधान नहीं हुए, तो दुनिया को बर्बाद होने से कोई रोक नहीं सकता.
रामप्रवेश जनकपुर के मिथिलांचल विकास परिषद् नामक एक संस्था से जुड़े हुए हैं. मिथिलांचल विकास परिषद् इन दिनों नेपाल में जलवायु परिवर्तन पर कम कर रहा है. रामप्रवेश बताते हैं कि सिर्फ एक-दो संस्था के काम करने से संकट का समाधान नहीं होने वाला है. इसके लिए सबको जागरूक होना पड़ेगा, वर्ना हमारे पापों के कारण दुनिया बर्बाद हो जाएगी. महिनाथपुर के आस-पास के गांवों में इन दिनों बाढ़ व सुखा से निपटने के लिए काफी काम किये जा रहे हैं. सिंचाई के लिए यहां  के ग्रामीणों ने मिथिलांचल विकास परिषद् के सहयोग से कमला नदी से एक नहर निकाली. ग्रामीणों ने इसके लिए श्रमदान किया. मिथिलाचल विकास परिषद् ने इसके लिए लोगों को जागरूक किया. पांच किमी लंबी नहर बनाने के बाद किसानों को सिंचाई का साधन ही नहीं मिला, बल्कि बाढ़ की समस्या का भी कुछ हद तक समाधान मिल गया. नहर बन जाने के बाद अब बाढ़ का पानी गाँव  में जमता नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि बाढ़ का पानी खेतों में जम जाने के कारण फसलें सड़ जाती है. किसानों का काफी नुकसान होता है. यह समस्या इन दस सालों में पैदा हुई है. यहां के लोगों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण या तो बाढ़ की समस्या गहराएगी, या फिर भयानक सूखा पड़ेगा. इसलिए जल को बचाना जरुरी है. 
जनकपुर के आस-पपस के गांवों में इस तरह के कई काम हो रहे हैं. जनकपुर शहर में भी इन दिनों चौक- चौराहों पर लोगों को जागरूक करने वाले बैनर-पोस्टर टंगे हुए मिल जायेंगे.
जलवायु परिवर्तन पर कोपेनहेगेन में सम्मलेन होने से पहले सगरमाथा {मौंट एवरेस्ट} के पास कैबिनेट की बैठक कर जलवायु परिवर्तन पर नेपाल अपनी जागरूकता दुनिया भर में प्रगट कर चुका है. इस समय नेपाल का यह प्रयास सचमुच काबिले तारीफ है. जहरिली गैसों का उत्सर्जन करने में अव्वल स्थान रखने वाले मुल्कों को इस बात की फिक्र तक नहीं है लेकिन नेपाल इस मुद्दे पर गंभीर है.  नेपाल इस बात से चकित है कि जहरिली गैसों का उत्सर्जन करने के मामले में उसका स्थान अभी काफी नीचे हैं लेकिन उसके हिमालय पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. झीलें सूखने लगी हैं. राजनीतिक रूप से अस्थिर नेपाल में जो कुछ कल कारखाने थे वो भी बंद हो गए हैं या बंद होने के कगार पर हैं. लेकिन उसका सगरमाथा, जिस पर हर नेपाली नाज करता है, पर संकट मंडराने लगा है. नेपाली इस बात को लेकर अपने पड़ोसी भारत व चीन से भी नाराज हैं. उनका मानना है कि ये दोनों देश समर्थ हैं और जहरिली गैसों का उत्सर्जन करने में अव्वल स्थान रखने वाले देशों से यह कह सकते हैं कि वे इसमें कटौती करे. रामप्रवेश बताते हैं कि अगर हिमालय पगलाया तो इसका खमियाजा सिर्फ नेपाल नहीं भुगतेगा, बल्कि भारत,चीन, भूटान, पाकिस्तान को भी इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा. धरती को बचाने की दिशा में रामप्रवेश जैसे लोगों की ऐसी पहल भले ही नाकाफी हो लेकिन ऐसी पहल से दुनिया भर के लोगों को सिख लेनी चाहिए.       
                                                                         -सच्चिदानंद                                    

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