रविवार, 15 सितंबर 2013

करमा के गीतों में हड़प्पा सभ्यता की महक

झारखंड के रग-रग में समाया व गिरिडीह जिले में रचा बसा प्रकृति पर्व करमा यूं तो भाई-बहन के अद्भूत प्रेम व सौंदर्य का प्रतीक है, पर इसके गीतों की सरलता, सहजता, समरसता व विशिष्टता इसे उत्कृष्ट दर्जा दिलाती है। जिले के आदिवासी समुदाय सहित अन्य समुदायों की युवतियों के जरिए गाए जा रहे गीतों में राज्य की सभ्यता व संस्कृति की सोंधी महक झलकती है। इतना ही नहीं इस पर्व के गीतों में प्राचीन कालीन सिंधु घाटी व हड़प्पा सभ्यता का भी जिक्र मिलता है। युवतियों के जरिए जावा जगाते हुए समूह में गाए जाने वाले एक गीत की पंक्ति देखिए- कइसे जे गेलंय भईया सिंधु के पार गो...तोर बिना कांदेय बहिन हड़प्पें झराय...इस गीत में हड़प्पा सभ्यता के विध्वंस का जिक्र  है। एक अन्य गीत में उज्जैन का भी जिक्र है- ताहि तरें भेंटइलन गेहुमन सांप रे छाडु-छाडु गेहुमन उजइनी के घाट...। जानकारों के मुताबिक इन गीतों में व्यक्त भावनाएं महज परंपरा निर्वाह की औपचारिकताएं नहीं, बल्कि झारखंड की परंपरा व रीति-रिवाजों का एक आईना भी है। करमा पर्व झारखंडी संस्कृति की पहचान है। इस अवसर पर गाए जाने वाले गीत सहज हैं। युगल किशोर की एक रिपोर्ट


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करमा के पर्व में गीतों का खास महत्व है। एक सह्रश्वताह तक चलने वाले इस त्योहार में महिलाएं रोज कम से कम दो-तीन बार जावा जगाती हैं। इस दौरान समूह में नाचते हुए गाए जाने वाले गीतों का कोई रिकार्ड नहीं है। ये गीत वर्षों से महिलाओं के कंठों में बसा हुआ है। बस, प्रतिवर्ष सह्रश्वताहभर की ट्रेनिंग करमा के अवसर पर चलती है। इन गीतों के गीतकारों का भी कोई अता-पता नहीं है।

जावा उठाव के संग होती है शुरुआत

जावा उठाव के साथ गांवों में लोक महापर्व कर्मा शुरू हुआ। प्रकृति के प्रति मानवीय जुड़ाव व भाई-बहनों के अटूट पे्रम पर आधारित कर्मा के गीतों से गांव गूंजने लगे हैं। कर्मा झारखंड के गांवों में रजने-बसने वाला
सर्वाधिक लोकप्रिय पर्वों में एक है। अमूमन गांवों में सात दिन तक चलने वाला यह पर्व लोकगीतों व नृत्यों से वातावरण को खुशनुमा बनाता है। जावा उठाव के साथ ही युवतियां सुबह-शाम जावा जगाने को लेकर जावा जागरण गीत गाती है। युवतियों के जावा जागरण गीतों में मानव समुदाय के प्रकृति के प्रति जुड़ाव व भाई-बहनों के पवित्र प्रेम का संबंध झलकता है। गांवों में सुबह-शाम कर्मा के गीतों की गूंज से गांव गुंजायमान हो रहे हैं। सात दिन तक चलने वाला कर्मा पर्व की गांवों में बहरहाल धूम मची है।

 करम गीतों में राम, लक्ष्मण और हनुमान

करमा आदिवासियों के महानतम पर्वों में एक है। यह सिर्फ आदिवासियों की ही नहीं, बल्कि झारखंड संस्कृति की समृद्ध पहचान है। आदिवासी बालाओं द्वारा मनाया जाने वाला यह पर्व कई कई मायने में महत्वपूर्ण है। प्रकृति के प्रति अगाध प्रेम के साथ भाई-बहनों के पवित्र रिश्तों की झलक करमा के गीत व नृत्य में परिलक्षित होता है। बालाएं करमा गीत में सृष्टि सृजनकर्ता से लेकर राम, लक्ष्मण और हनुमान तक का स्मरण कराते हैं। आदिवासियों के धार्मिक ग्रंथों और लोककथाओं के अनुसार करमा पर्व का सृजन पिलचू बूढ़ी (प्रारंभिक मानव माता) ने अपनी बेटियों के लिए किया था। तब से बहनें अपने भाइयों के रक्षार्थ और प्रकृति के पूजन के रूप में करमा करती हैं।


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