शुक्रवार, 5 मई 2017

जानकीक बहन्ने एकजुट भ' रहल अछि मिथिला

लेखकक नाम माेन नहि पड़ि रहल अछि। कोइ रुसी लेखक रहथि, कहने रहथि जे सीता काल्पनिक पात्र छथि वा वास्तविक, से हमरा नहि बुझल अछि। मुदा सीता दुनियाक सर्वश्रेष्ठ स्त्री पात्र छथि, ऐ मे कोनो संदेह नहि। हिनका जकाँ आर कोनो स्त्री पात्र दुनिया मे नहि भेटत। हम मिथलावासी सीताक दुख सँ तहियो दुखी होइ छलौं आ आइयो भ' रहल छी। तहियो क्रोध अबै छल आ आइयो क्रोध अबैए। मुदा हम सभ अपन क्रोध कें, अपन दुख कें अपनहि धरि रखलौं। सभ दिन इएह सोचैत रहलौं जे ककरा कहबै? के पतियाएत? आ इएह सोचैत-सोचैत एकटा लंबा कालखंड खतम भ' गेलै।
मुदा आब ई दुख हमरा सभ कें बर्दाश्त नहि होइए। प्रश्न अछि त' ओकर जवाब चाही। देश भरि मे रामनवमी मनाओल जाइए मुदा जानकी नवमी किए ने? सीताक बिना रामक कोनो अस्तित्व?  कम सँ कम सीताक प्रति हुनकर व्यवहार 'पुरुषों में उत्तम' बला त' नहि रहनि तहन ओ कोना बनि गेला मर्यादा पुरुषोत्तम? सभ कोइ सिरिफ सीता नहि, सीताक धरतीक तक कें उपेक्षित रखलनि किए? सीता भने आध्यात्मिक पात्र होइथ मुदा हुनकर जे चरित्र छनि से कतहु सँ महज आध्यात्मिक नहि छनि। ओ धर्म सँ ऊपर छथि।
जानकी नवमीक बहन्ने हमरा सभ कें बहुत रास प्रश्नक जवाब चाही। एमहर नीक बात ई भेलए जे हम सभ विभिन्न जगह पर जानकी नवमी मनबै छी, ओइ पर सोचै छी, विचारै छी आ अंदर सेहो देखबाक प्रयत्न करै छी। निश्चित रूप सँ हमरा सभ कें ई पहल मजगूती देत।
जानकी नवमीक बहन्ने हम एत' विभूति आनंदमनोज शांडिल्यक कविता प्रस्तुत क' रहल छी। ई कविता दुनू गोटेक फेसबुक वॉल सँ लेल गेल अछि। संगहि राजा रवि वर्माक ई फोटो सेहो विभूतिजीक फेसबुक वॉल सँ लेल गेल अछि। विभूतिजीक कविता मे जत' सीताक वेदना आहाँकें भेटत ओतै मनोज शांडिल्यक कविता समयक संगे बदलैत चरित्र सँ आहाँ कें अवगत कराओत। विभूतिजीक कविता आहाँकें वेदनाक सागर मे डूबा सकैए मुदा मनोजजीक कविता आहाँकें ऐ सागर सँ निकालत। आहाँ कें वर्तमान सँ अवगत कराएत, समयक बदलैत चरित्र पर कटाक्ष करत, आहाँ कें बिठुआ काटत।
                                                 - सच्चू

हे बहिन सीता 

फोटो - रवि वर्मा।

विभूति आनंद

हे बहीन सीता,
केहन भाग्य ल' क' 
जनमलहुँ,
फेकि देल गेलहुँ 
खेत मे ! 

आइ धरि 
चैन नहि भेटल
छलहुँ मनुष्य, 
बना देल गेलहुँ 
देवता...

अहिंक भाग्य
हमरो सभक संग सटा गेल
परिचिति लेल बौआ रहल छी,
अपनहि मे लड़ैत...

से बेजाय नहि कहलनि
अहाँक ओ कथित
मर्यादापुरुषोत्तम-
'गृहे शूरा...!'

आ अहाँ तँ सहजहिं,
ने ससुरे बास, 
ने नहिरे बास...

तखन,
तखन ककर आस !
तँ,
फाटह हे धरती..

 जानकी 

मनोज शांडिल्य


आब नहि प्रकट होइत छथि जानकी
धरतीक वक्ष सँ
आब जन्म लैत छथि सिया
मायक कोखि सँ
आ ताहू मे
प्राण पर नाना तरहक गिद्ध-दृष्टि रहबाक बादहु
भ्रूण सँ मनुक्ख धारिक यात्रा
पूर्ण कइए लैत छथि आब बेसीभाग

समय बदललैए
आब बनवास होउक कि अज्ञातवास
आकि घरवास वा आवास-प्रवास
नहि खिंचाइत छन्हि श्रीराम बुते
एक पहिया पर गाड़ी
नहि सकि पबैत छथि आब एकसरे

बहुत घूमि चुकल छै कालचक्र
आब इस्कुल-कओलेज मे
क' रहल छथि सीता
सहस्रो दशरथपुत्रक भविष्यक निर्माण
खेत-खरिहान सँ ल' क'
ऑफिस-कचहरी धरि मे
यत्र-तत्र क' रहलि छथि मैथिली
कतेको रघुनंदनक माथ परहक भार हल्लुक

राम-रावणक किरदानी देखि
धरती फटैत छथि आइयो
मुदा ताहि मे पैसैत नहि छथि जानकी
कात सँ निकलि जाइत छथि
अपन साईकल-स्कूटर-मोटर पर
प्रकृतिकेँ ओकर धुरी पर
घुमओबैत रहबाक लेल
सृष्टिकेँ ओकर पटरी पर
चलओबैत रहबाक लेल




बुधवार, 3 मई 2017

सुनिए बांग्ला कवि नजरूल इस्लाम की कविता का हिंदी अनुवाद

यहाँ प्रस्तुत काजी नजरूल इस्लाम की अमर कविता विद्रोही का हिंदी अनुवाद एवं पाठ पंकज मित्रा ने किया है। मई में काजी नजरूल इस्लाम की जयंती है।